उर्मिरूमी द्वारा

ड्रामा क्वीन

मित्रता कितना कमाल का भाव है ना? दोस्ती बहुत अनोखी चीज़ है, क्योंकि सिर्फ यही रिश्ता है जिसे आप पूरी तरह से खुद चुनते हैं।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि दोस्त किस परिवार से है, कितना मालदार खानदान है उसका या कहां रहता है ।
यूं तो दोस्ती सभी तरह से खास है, लेकिन महिलाओं की मैत्री एक अलग ही भावना सागर में गोते लगाती रहती है! इस रिश्ते में प्रेम है, सम्मान है, बहनापा भी है ; कभी कभी तो मातृत्व भी है! पर सिर्फ अच्छी अच्छी बातें नहीं, दो स्त्रियां दोस्ती में बहुत से धूसर रंगों को भी लिए रहती हैं, जैसे जलन, द्वेष, हीन भावना और भी ना जाने क्या क्या… लेकिन ये पूरा मित्रता ब्रह्मांड ही अनोखेपन से परिपूर्ण है। कभी दो बहनें सहेलियां होती हैं, कभी घर की सदस्याएं भी, ये रिश्ता सीमित नहीं है! जितना जाना पहचाना उतना ही अंजाना भी…कहते हैं ना, एक महिला ही दूसरी महिला की दुश्मन होती है : एक महिला बहुत कुछ हो सकती है … सहेली होना उसका एक बहुत व्यापक रूप और प्रारूप है।

मैं, उर्मि

किसी से कहा जाय कि खुद का परिचय दो तो बड़ा कठिन है उसे इस तरह देना कि विनम्रलगे, ऐसा न लगे जैसे खुदकी बढ़ाई की जा रही हो।बचपन से ही इस संस्कार के साथ पाला गया है, कि असली तारीफ़ वो है जो खुद कहकर करवानी न पड़े, और असली सफलता वो है, जिसमें अपना परिचयन दे ना पड़े। संकोच से, और बंधे हु एक रोंसे, अन्य पुरुष में यह परिचय दे रही हूँ।

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उर्मि दर्शन राठोड “उर्मि रूमी” पुणे की निवासी हैं, लेकिन आत्मा मूल निवास स्थान भोपाल में ही बसती है। जन्म पुद्दुचेरी में हुआ, क्योंकि डॉक्टर पिता उस समय वहीं जिपमर में कार्यरत थे। बचपन भोपाल, मध्य प्रदेश में व्यतीत किया। विज्ञापन में स्नातक सरोजिनी नायडू कन्या महाविद्यालय, भोपाल, और स्नातकोत्तर शिक्षा माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से प्राप्त की, और यूनिवर्सिटी टॉपर रहीं। जड़ें भोपाल के प्राइवेट रेडियो से निकली हैं, जहाँ 94.3 माय एफ़ एम में रेडियो जॉकी रहीं। आकाशवाणी पर कविता पाठ भी किया, और दूरदर्शन पर कुछ कार्यक्रमों कि प्रस्तुति भी की, बतौर एंकर । इसके अलावा विज्ञापन एजेंसी में बतौर कॉपीराइटर कार्य किया और संस्कृति विभाग, मध्य प्रदेश के द्वारा कराये जाने वाले कार्यक्रमों में संचालन भी किया। पिछले 14 साल से सक्रिय रूप से लिख रही हैं। कवितायेँ, कहानियां खुद के लिए; और मार्केटिंग कंटेंट राइटिंग क्लाइंट्स के लिए करते करते, ईबुक्स और आर्टिकल्स / ब्लॉग्स लिखे, कंटेंट कंसल्टेंसी की तथा फिर खुद के पॉडकास्ट और अब किंडल किताब तक पहुंची हैं। वर्तमान में ३ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से २ कहानी संग्रह हैं और एक कविता संग्रह। विभिन्न कॉलेजों में कुछ वर्ष विजिटिंग फैकल्टी के रूप में मास कम्युनिकेशन तथा एडवरटाइजिंग विषय पढ़ाए – यही उनके एम बी ए के भी विषय थे। एक पुत्री की माँ हैं और एक श्वान की भी।

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ड्रामा क्वीन

मित्रता कितना कमाल का भाव है ना? दोस्ती बहुत अनोखी चीज़ है, क्योंकि सिर्फ यही रिश्ता है जिसे आप पूरी तरह से खुद चुनते हैं।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि दोस्त किस परिवार से है, कितना मालदार खानदान है उसका या कहां रहता है ।
यूं तो दोस्ती सभी तरह से खास है, लेकिन महिलाओं की मैत्री एक अलग ही भावना सागर में गोते लगाती रहती है! इस रिश्ते में प्रेम है, सम्मान है, बहनापा भी है ; कभी कभी तो मातृत्व भी है! पर सिर्फ अच्छी अच्छी बातें नहीं, दो स्त्रियां दोस्ती में बहुत से धूसर रंगों को भी लिए रहती हैं, जैसे जलन, द्वेष, हीन भावना और भी ना जाने क्या क्या… लेकिन ये पूरा मित्रता ब्रह्मांड ही अनोखेपन से परिपूर्ण है। कभी दो बहनें सहेलियां होती हैं, कभी घर की सदस्याएं भी, ये रिश्ता सीमित नहीं है! जितना जाना पहचाना उतना ही अंजाना भी…कहते हैं ना, एक महिला ही दूसरी महिला की दुश्मन होती है : एक महिला बहुत कुछ हो सकती है … सहेली होना उसका एक बहुत व्यापक रूप और प्रारूप है।

छोड़ अकेला फिर जाओ

इतने सालों में हिंदुस्तानी औरत की ज़िन्दगी में कुछ ख़ास नहीं बदला है। हाँ, उच्च शिक्षा, बराबरी की परवरिश ज़रूर मिली है, लेकिन घर हो या कार्यक्षेत्र, अपमान, कमतर आंका जाना और दुर्व्यवहार हर औरत के हिस्से बंधे हुए हैं, मानो वह इन्हें अपने कर्मों में लिखा के ही लाती है । ये कैसी चेतना है जो औरत के अधिकारों के लिए जब तक छीना झपटी न करनी पड़े, जागृत ही नहीं होती? ये कैसा दोगलापन?
इन कहानियों में अपमान है, भेदभाव भी है, पर हर नायिका की एक ख़ास बात है कि वह कभी हार नहीं मानेगी, हथियार नहीं डालेगी। हर नायिका की अपनी आवाज़ है, चाहे धीमी हो या तेज़। और साथ ही एक जिजीविषा, कि चाहे जो हो जाये, आवाज़ दबने न पाए।

तू आग है

कविता दर्द से निकली है । जब क्रोंच पक्षी को व्याध ने मार गिराया और मादा विलाप करने लगी तो ऋषि वाल्मीकि के ह्रदय की वो सभी तंत्रिकाएं झनझना उठीं जो कविता लेखन के लिए छेड़ी जानी चाहिये। कविता पहले अंदर पनपती है, कोई बात आपको लग जानी चाहिए, आत्मा तक। फिर वो धीरे धीरे आपकी ही आत्मा के टुकड़ों को खाती हुई बढ़ने लगती है, आत्मा के कतरों से लिपटी, विकसित होने लगती है और फिर उसका प्रसव होता है – फिर कविता जन्मती है। ये किताब बस कुछ कविताएँ नहीं हैं। गौर से शीर्षक पढ़ियेगा, उनमें भी अपनी एक कहानी है। बार बार यही प्रक्रिया दोहराने और तकलीफ के बावजूद भी उसमें बहुत मन लगाने का नतीजा है ‘तू आग है’। पेश है, मेरे दिमाग की उपज। दर्द से निकली, मेरी रूह से उत्पन्न, कुछ कवितायेँ जो हम सब की कहानियां हैं – ज़िन्दगी की कहानियां हैं। ज़िन्दगी का जश्न भी हैं।

“स्नेहा को खुद का जीवन एक बोझ लगता था। खुद की ज़िन्दगी की परेशानियां बड़ी लगती थीं। लेकिन ये बिन बाप की लड़की, बचपन से लेकर जवानी तक, केवल संघर्ष! कहते हैं, अपनी परेशानियां बड़ी लगें तो दूसरों के साथ उनकी तुलना कर लो। अगर कहा जाये कि किसी से अपनी परेशानियां एक्सचेंज कर लो तो तुम्हें इच्छा भी न होगी। दूसरों के आगे छोटी लगने लगेंगी अपनी परेशानियां। गौरगोपाल दास ने कहा है न, ज़िन्दगी किसी को नहीं छोड़ती।”

पत्नी चाहिए जो सुन्दर दिखे, प्रस्तुतिकरण ज़ोरदार हो उसका, प्रभाव छोड़े। दिमाग विमाग का कोई ख़ास रोल नहीं होता। दिमाग साधारण हो तो चल जाता है, रूप में कोई कोम्प्रोमाईज़ नहीं चाहिए। वो ऐसी हो जो चार आदमियों के सामने लाने ले जाने में अच्छी दिखे, बस। और आदमी की बराबरी या उस से बेहतर करियर या उपलब्धियां? वो तो भैया भूल ही जाओ। औरत न हुई, डिनर सेट हो गयी। दिखावा करो और धो पोंछ के फिर से शोकेस में सजा दो।

तू नहीं नरम, तू नहीं अबल
जो नहीं तेरा या तेरे लिए उसे बदल
दरवाजे बंद नहीं तेरे, विकल्प खत्म नहीं तेरे
तू तप जा इतनी कि धधक उठे सकंल्प तरेे

तू क्या थी, तू कौन है?
क्यों इतनी गमु तू क्यों मौन है
मैं नहीं कह रही भिड़, झगड़ ले
लेकिन छीनता हो स्वत्व कोई तो तू भी निपट ले

पाठक कहते हैं…

राजीव बर्नवाल
ऊर्मि रूमी जी के लेखन में एक अलग बात है । जिस तरह बड़ी सहजता से वह मानवीय भावनाओं का वर्णन करती है वह उनकी कहानियों को और भी जीवंत कर देता है। दोस्ती पर लिखी हुई उनकी कहानियाँ मार्मिक है और संपूर्ण रूप से आपको अपनी दुनिया में ले जाति है । ऊर्मि जी को उनकी इसे किताब के लिये मेरी अनंत शुभकामनाएं।

राजीव बर्नवाल
फ़िल्म निर्देशक
वध (नेटफ्लिक्स)
जहानाबाद (सोनी लिव)

सतलज राहत
मुझे खालिस पाठक माना जा सकता है ..क्योंकि इन कहानियों की लेखिका को एक दशक से पढ़ता रहा हूं …. किताब के जरिए ही उनसे और उनके किरदारों से मुलाकात हुई है ….किरदारों का विस्तार .. कहानीकार की संवेदनशीलता को पाठक के सामने ऐसे बेनकाब कर देता है .की …पाठक और कहानीकार इकाई बन जाते हैं … वैसे तो उर्मी से मेरा रिश्ता पिछले 10 _ 15 साल की घेराबंदी करता है लेकिन “छोड़ अकेला फिर जाओ” पढ़ कर महसूस हुआ के अभी तक उसको समझने में मैं उसकी तस्वीरों और उसके पोस्ट का जो सहारा ले रहा था वो नाकाफी था .. उसकी सोच में वुसअत है … उसके किरदार असली हैं और उसकी कहानी सच्ची है … मेरी ज़ाती कैफियत का आलम कुछ ऐसा है के जैसे एक किताब कंठस्त करने वाले ने एक जुग बीतने के बाद उस किताब की भाषा का ज्ञान लिया हो .. और अपने स्मरण सुमरन का अर्थ जानकर ज्ञानी बन गया हो … विराह की दुआ मांगने वाली इस दौर की लेखिका उर्मी को मेरी तरफ से खूब मुबारकबाद ……

सतलज राहत
20 जून 2022
इंदौर , म. प्र.

डॉ. सुनीता पाठक

संत हंस गुन गहहि पय परिहरि बारि विकार

उर्मि रूमि जीवन और समाज की संवेदनाओं को अपनी कहानियों के माध्यम व्यक्त करती आ रही हैं। एक संवेदनशील हृदय के साथ साथ एक सजग चिंतक के विवेक से निरंतर परिचालित रहने वाली कथाकार है। कहानियों की विषयवस्तु कुछ भी हो उसके भीतर से सामाजिक हित चिंतन की, सकारात्मकता की एक अविच्छिन्न सलिला सदैव वहमान है। ‘उर्मि रूमि’ एक प्रखर तेजस्विनी लेखिका हैं। स्वाभाविक रूप से अपनी ऊर्जा और तेजस्विता की धार के साथ अपनी सहज मानवीय संवेदना का संयोजन कर इन्होंने ये कहानियाँ लिखी हैं। मैं उर्मि का इस कथासंग्रह ‘ड्रामा क्वीन’ के प्रकाशन के अवसर पर अभिनंदन करती हूँ । विश्वास है कि यह संग्रह पाठकों के बीच अत्यन्त लोकप्रिय सिद्ध होगा। कामना है कि लेखिका इसी तरह अपने सृजन धर्म एवं सृजन धर्म के प्रति इसी निष्ठा से निरंतर गतिशील रहें!
डॉ. सुनीता पाठक
बेंगलोर
16/4/2023

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